
तुमको तपना होगा..मोह को तजना होगा-मुनि प्रसन्नसागर
February 10, 2018
तपकल्याणक में गूंजे श्रद्धा व आस्था के जयकारे
जयपुर। मुनि प्रसन्नसागर ससंघ व आर्यिका गौरवमती माताजी ससंघ के सान्निध्य में चल रहे जनकपुरी ज्योतिनगर स्थित दिगंबर जैन मन्दिर में सहस्त्रकूट जिनालय में स्थित 1008 मूर्तियों के पंचकल्याणक समारोह के चौथेे दिन शनिवार सुबह अमरूदो के बाग में तपककल्याणक पूजा, बाल स्वरूप नेमिनाथ का अन्नप्रासन
संस्कार, विवाह संस्कार…राज्याभिषेक… वैराग्य की ओर प्रवृत्त किस प्रकार हुए पर मनोरम झांकियों…नृत्य नाटिकाओं के माध्यम से दर्शाया गया। 32 मुकुटधारी राजा विवाह में सम्मिलत हुए और विवाह के सभी संस्कार
हुए। गर्भ और जन्म पूर्व तप का अमृत फल है महोत्सव में मुनिप्रसन्नसागर ने कहा कि निरंतर गतिमान व अपनी अनंत
ऊचाइयों के सोपान की ओर अग्रसर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव का तीसरा चरण दीक्षा या तप कल्याणक का मंगल दिवस है। यह तीर्थंकर के परम पद को पाने का संकल्प दिवस है। यह पद राज्य वैभव व सांसारिक विभूति से नही पाया जा सकता। तप जीवन का उध्र्वगमन है। तप ही पॉचों कल्याणकों की पृष्ठभूमि है। जो भव्यजन पूर्व जन्म में तप करते है, तप में अनुराग रखते है वे ही मरणोंपरांत गर्भ और जन्म कल्याणक के पात्र बनते है। जो जन्म लेकर इस भव
में तप करते है उनके ज्ञान और निर्वाण कल्याणक मनाए जाते है। अपने जीवन में शान्ति और सफलता े लिए पांच बाते ध्यान में रखनी चाहिए। प्रथम-जिंदगी मे इच्छाओं को कम करे, आसक्ति कम करे। दूसरा-जीवन के हर सत्य को स्वीकारें, अच्छे और बुरे दिन के सत्य को स्वीकारे। तीसरा-जिंदंगी में अपनी तुलना किसी से मत करो। चौथा- शुभ कार्य में आलस्य और प्रमाद मत करों और अंतिम सबसे मैत्री भाव बनाए रखे।
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